शहर दर शहर- हरिहरन

शहर दर शहर लिए फिरता हूँ तन्हाई को
कोनसा नाम दु में तेरी शनासाई को
शहर दर शहर

कोई महफ़िल हो तेरा नाम तो आ जाता है
जानकर साथ लगा रखा है रुसवाई को
शहर दर शहर

जिस तरफ जाइये है खोखले लफ्जो का हुजूम
कौन समझे यहां आवाज की गहराई को
शहर दर शहर

खूब वाकिफ हु में दुनिया के चलन से राशिद
मेने पर्वत नही समझा कभी राई को
शहर दर शहर





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