हम तेरे शहर में -गुलाम अली खां


हम तेरे शहर में आये है मुसाफिर की तरह .......2
सिर्फ एक बार मुलाकात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में आये है

मेरी मंजिल है कहा मेरा ठिकाना है कहाँ...2
सुबह तक तुजसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ
सोचने के लिए एक रात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में आये है

अपनी आंखों में छुपा रखे है जुगनू मेने......2
अपनी पलको पे सजा रखे है आंसू मेने
मेरी आँखों को भी बरसात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में आये है

आज की रात मेरा दर्द-ए-मोहब्बत सुन ले....2
कंपकपाते हुए होंठो की शिकायत सुनले
आज इजहार -ए- खयालात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में आये है

भूलना था तो ये इकरार किया ही क्यों था.....2
बेवफा तूने मुझे प्यार किया ही क्यों था
सिर्फ दो चार सवालात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में आये है


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