उस्ताद गुलाम अली खां
कहा आके रुकने थे रास्ते कहा मौड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नही मिला उसे भूल जा
कहा आके रुकने के ..........
वो तेरे नसीब की बारिशें किसी ओर छत पे बरस गई
दिल-ए-बेखबर मेरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा
कहा आके रुकने के ..........
में तो गुम था तेरे ही ध्यान में तेरे आस तेरे गुमान में
हवा के गयी मेरे कान में मेरे साथ आ उसे भूल जा
कहा आके रुकने के ..........
बड़े वसुक से दुनिया फरेब देती है
बड़े खुलूस से हम एतबार करते है
तुजे चांद बनके मिला था जो तेरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया बिसाल का सो उत्तर गया उसे भूल जा
कहा आके रुकने के ..........
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