खुली जो आँख - मेहदी हसन

खुली जो आँख तो वो था न वो जमाना था
दहकती आँग थी तन्हाई थी फसाना था
खुली जो आँख तो

ग़मो ने बांट लिया है मुजे यू आपस मे
के जैसे में कोई लुटा हुआ खजाना था
दहकती आँग थी तन्हाई थी फसाना था
खुली जो आँख तो

ये क्या के चंद ही कदमो पे थक के बैठ गए
तुम्हे तो साथ मेरा दूर तक निभाना था
दहकती आँग थी तन्हाई थी फसाना था
खुली जो आँख तो

मुजे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है
वो कोई गैर नही यार इक पुराना था
दहकती आँग थी तन्हाई थी फसाना था
खुली जो आँख तो

खुद अपने हाथ से शहजाद उसको काट दिया
के जिस तरफ की टहनी पे आशियाना था
दहकती आँग थी तन्हाई थी फसाना था
खुली जो आँख तो

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