टूटे कहे ख्वाबो के लिए आंख ये तर क्यू
सोचो तो सही शाम है अंजाम-ए-सेहर क्यू
जो ताज सजाये हुए फिरता हूँ अनाखा
हालात के कदमो पे झुकेगा वोही सेहर क्यू
टूटे कहे ख्वाबो के लिए आंख ये तर क्यू
सोचो तो सही शाम है अंजाम-ए-सेहर क्यू
सिलते ही तो सील जाए किसे फिक्र लबो की
खुशरंग अंधेरो को कहूंगा में सेहर क्यू
टूटे कहे ख्वाबो के लिए आंख ये तर क्यू
सोचो तो सही शाम है अंजाम-ए-सेहर क्यू
सोचा किया मेने हिज़्र की दहलीज पे बैठा
सदियों में उतर जाता है लम्हो का सफर क्यू
टूटे कहे ख्वाबो के लिए आंख ये तर क्यू
सोचो तो सही शाम है अंजाम-ए-सेहर क्यू
हरजाई है शहज़ाद ये तस्लीम पचाना
सोचा भी कभी तुमने हुआ ऐसा मगर क्यू
टूटे कहे ख्वाबो के लिए आंख ये तर क्यू
सोचो तो सही शाम है अंजाम-ए-सेहर क्यू
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