दर्द के रिश्ते - हरिहरन

दर्द के रिश्ते न कर डाले उसे बेकल कहीं
हो गयी इस साल भी कुछ बस्तिया जल थल कही
दर्द के रिश्ते न कर

रात की बेरंगियो में हम बिछड़ न जाये दोस्त
हाथ मेरे हाथ मेरे ओर यंहा से चल कही
दर्द के रिश्ते न कर

आज सूरज  खुद ही अपनी रोशनी से जल गया
कह रहा था राज़ की ये बात एक पागल कहीं
दर्द के रिश्ते न कर

ये खबर होती तो करता कौन बारिश की दुआ
प्यास से हम मर गए  रोता रहा बादल कहीं
दर्द के रिश्ते न कर





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