दर्द के रिश्ते न कर डाले उसे बेकल कहीं
हो गयी इस साल भी कुछ बस्तिया जल थल कही
दर्द के रिश्ते न कर
रात की बेरंगियो में हम बिछड़ न जाये दोस्त
हाथ मेरे हाथ मेरे ओर यंहा से चल कही
दर्द के रिश्ते न कर
आज सूरज खुद ही अपनी रोशनी से जल गया
कह रहा था राज़ की ये बात एक पागल कहीं
दर्द के रिश्ते न कर
ये खबर होती तो करता कौन बारिश की दुआ
प्यास से हम मर गए रोता रहा बादल कहीं
दर्द के रिश्ते न कर
Comments
Post a Comment