जब भी महखाने से - मेहदी हसन

जब भी महखाने से पीकर हम चले
साथ लेकर सेकड़ो आलम चले
जब भी 

थक गए थे ज़िन्दगी की राह में 
होक महखाने से ताज़ा दम चले

बाद मुद्दत के मिले है आज वो
गर्दिश-ए-दौरान जरा मध्यम चले

जितने गम ज़ालिम जमाने ने दिए
दफ्न करके मयकदे में हम चले

पीने वालों मौसमों की कैद क्या
आज तो इक दौर बे-मौसम चले।



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