एक बस तू ही नही - मेहदी हसन

एक बस तू ही नही मुझसे खफा हो बैठा 
मेने जो संघ तराशा वो खुदा हो बैठा
एक बस तू ही नही

उठ के मंजिल ही अगर आये तो शायद कुछ हो
शोक-ए-मंजिल तो मेरा आब लफा हो बैठा
एक बस तू ही नही मुझसे खफा हो बैठा 
मेने जो संघ तराशा वो खुदा हो बैठा

मसलिहत छीन गयी कुवत्ते-ए-गुफ्तार मगर
कुछ न कहना ही मेरा मेरी सदा हो बैठा
एक बस तू ही नही मुझसे खफा हो बैठा 
मेने जो संघ तराशा वो खुदा हो बैठा

शुक्रिया ए मेरे कातिल ए मसीहा मेरे
ज़हर जो तूने दिया था वो दवा हो बैठा
एक बस तू ही नही मुझसे खफा हो बैठा 
मेने जो संघ तराशा वो खुदा हो बैठा

जाने शहजाद को मिनजुमला-ए-आदा पाकर
हुक वो उठी के जी तन से जुदा हो बैठा
एक बस तू ही नही मुझसे खफा हो बैठा 
मेने जो संघ तराशा वो खुदा हो बैठा


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