चराग-ए-इश्क़ जलाने - जगजीत सिंह

चराग -ए- इश्क़ जलाने की रात आयी है
किसी को अपना बनाने की रात आयी है
चराग -ए- इश्क़ जलाने

वो आज लाये है महफ़िल में चाँदनी लेकर
के रोशनी में नहाने की रात आयी है
किसी को अपना बनाने की रात आयी है
चराग -ए- इश्क़ जलाने

फलकता चाँद भी शरमा के मुँह छुपायेगा
नकाब रुख से उठाने की रात आयी है 
किसी को अपना बनाने की रात आयी है
चराग -ए- इश्क़ जलाने

निगाहे साकी से पैगाम छलक रही है शराब
पीयू के पीने पिलाने की रात आयी है
किसी को अपना बनाने की रात आयी है
चराग -ए- इश्क़ जलाने



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